Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप
एक घंटा पहलेलेखक: मनीषा भल्ला
- कॉपी लिंक
- फिल्म प्रोड्यूसर्स का खर्च भी बढे़गा और देरी भी होगी
- लोकसभा में बिल पास न हुआ तो ऑर्डिनेंस लाया गया
भारत सरकार ने फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलेट ट्रिब्यूनल को रातोंरात निरस्त कर दिया है। इससे फिल्म प्रोड्यूसर्स के लिए सेंसर बोर्ड के फैसले के खिलाफ अपील में जाने का एक रास्ता बंद हो गया है। केन्द्र सरकार ने दो दिन पहले दी ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स (रैशनलाइजेशन एंड कंडीशंस ऑफ सर्विस) ऑर्डिनेंस, 2021 जारी किया है।
इसके जरिए अलग-अलग आठ ट्रिब्यूनल को निरस्त किया गया है। जिसमें फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलेट ट्रिब्यूनल भी शामिल है। अब जिस भी निर्माता को सेंसर बोर्ड के फैसले से आपत्ति होगी, उसे सीधे हाईकोर्ट में ही अपील करनी पड़ेगी। फिल्म कलाकारों ने इसे सिनेमा के लिए काला दिन बताया है। हंसल मेहता से लेकर विशाल भारद्वाज तक ने इस बारे में ट्वीट कर गुस्सा जाहिर किया है।
Do the high courts have a lot of time to address film certification grievances? How many film producers will have the means to approach the courts? The FCAT discontinuation feels arbitrary and is definitely restrictive. Why this unfortunate timing? Why take this decision at all?
— Hansal Mehta (@mehtahansal) April 7, 2021
निर्माता-निर्देशक और संगीतकार विशाल भारद्वाज ने भी ट्वीट के जरिए सरकार के फैसले पर गुस्सा जाहिर किया है। फिल्म निर्माताओं का मानना है कि इससे इंडस्ट्री को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
ये था फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलेट ट्रिब्यूनल (FCAT) का काम
भारत सरकार ने सिनेमेटोग्राफ एक्ट के तहत 1983 में फिल्म सर्टिफिकेशन ट्रिब्यूनल का गठन किया था। इस ट्रिब्यूनल में सेंसर बोर्ड के फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती थी । सेंसर बोर्ड ने कोई कट या तो कोई सुधार का आदेश दिया हो और फिल्म निर्माता को लगे कि सेंसर बोर्ड का ये आदेश सही नहीं है, तो वे ट्रिब्यूनल में अपील दायर कर सकते थे।

इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (इम्पा) के प्रेसिडेंट टीपी अग्रवाल
बहुत बुरी खबर : इम्पा
इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (इम्पा) के प्रेसिडेंट टीपी अग्रवाल ने दैनिक भास्कर को बताया कि फिल्म उद्योग के लिए ये ट्रिब्यूनल निरस्त हो जाना बहुत ही बुरी खबर है। अब तक हम लोग सेंसर बोर्ड के फैसले के खिलाफ ट्रिब्यूनल में चले जाते थे, तो काफी सारे मामले सेटल भी हो जाते थे। ट्रिब्यूनल खुद सर्टिफिकेट जारी करता था, जो हमारे लिए मान्य होता था। शायद ही कोई मामला होगा, जहां ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में जाना पड़ा हो। अब ट्रिब्यूनल न रहने से सीधे हाईकोर्ट जाना होगा तो फैसला मिलने में काफी समय लग सकता है ।
लिपस्टिक अंडर माय बुर्का जैसी फिल्में ट्रिब्यूनल ने ही पास की थी
फिल्म क्रिटिक मयंक शेखर बताते हैं कि सेंसर बोर्ड के बाद फिल्म मेकर के पास कोई विंडो तो होना चाहिए, जहां वह अपनी बात कह सके, वह सेंसर बोर्ड के बाद सीधे अदालत कैसे जाएगा। फिल्म मेकर्स के लिए यह एक हैरेसमेंट है। मयंक के अनुसार ट्रिब्यूनल ने हमेशा अहम फैसले दिए हैं। लिपस्टिक अंडर माय बुर्का जैसी अनेक फिल्मों के फैसले कम समय में हुए हैं। यह ट्रिब्यूनल, सेंसर बोर्ड के ऑब्जेक्शन के बाद सेंसर बोर्ड की मांग के अनुसार उसमें बदलाव के सुझाव देकर सर्टिफिकेट देता था। उसके पास सर्टिफिकेट देने का अधिकार था, लेकिन अब वह पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। अदालतें अपने 20-20 साल के केस देखेंगी या फिल्में। और, कोर्ट-कचहरी, वकील आदि के लंबे और पेचीदा मामले में कोई उलझना भी नहीं चाहेगा।

एक्ट्रेस पूनम ढिल्लो भी काफी समय से इस ट्रिब्यूनल से जुड़ीं है। वे भी इस फैसले को लेकर नाखुश हैं।
ट्रिब्यूनल की सदस्य पूनम ढिल्लो भी नाखुश
वर्ष 2017 में इस ट्रिब्यूनल की सदस्य बनीं पूनम ढिल्लो के साथ ‘भास्कर’ ने इस मसले पर खास बात की। भाजपा मुंबई महानगर की उपाध्यक्ष भी रहीं पूनम ने बताया कि ‘यह ट्रिब्यूनल सेंसर बोर्ड और फिल्म प्रोड्यूसर के बीच एक साझा प्लेटफॉर्म था। हम लोग सेंसर बोर्ड के ऑब्जेक्शन पर एक नहीं, तीन-तीन दफा फिल्में देखते थे। प्रोड्यूसर उसमें जो बदलाव करके लाते थे, उसे भी कई दफा देखते थे, इससे सभी का वक्त बचता था, लेकिन अब प्रोड्यूसर को सीधे हाईकोर्ट जाना होगा। वैसे भी, गंभीर मामलों से ओवरलोड अदालतों के पास किसी भी फिल्म को देखने के लिए समय ही नहीं है।’
पूनम ढिल्लो के अनुसार ट्रिब्यूनल में कोई भी सदस्य सैलरी पर नहीं था। सिर्फ फिल्म देखने के 2,000 रुपए मिलते थे जो ट्रिब्यूनल सदस्यों के लिए कोई बड़ी रकम नहीं थी, लेकिन यह एक अहम प्लेटफॉर्म था, जहां फिल्म संबंधी विवाद झटपट सुलझ जाते थे। जाहिर है कि फिल्म सेंसर बोर्ड में तभी जाती है, जब वह रिलीज के लिए तैयार होती है। ऐसे में अगर फिल्में अदालतों में अटक जाएंगीं तो प्रोड्यूसर को होने वाले नुकसान के बारे में समझा जा सकता है।

फिल्म प्रोड्यूसर आनंद पंडित अक्सर केंद्र सरकार के पक्ष में दिखाई देते हैं, लेकिन इस फैसले को लेकर वे भी सरकार से नाराज हैं।
फिल्में देखना अदालतों का काम नहीं : आनंद पंडित
फिल्म ‘चेहरे’ और ‘बिग बुल’ के प्रोड्यूसर आनंद पंडित का कहना है कि सरकार द्वारा इस ट्रिब्यूनल को निरस्त करने के पीछे जरूर कोई वाजिब वजह ही रही होगी, लेकिन बतौर प्रोडयूसर अगर मैं बात करूं तो फिल्मों के विवाद को लेकर अदालत जाना इतना आसान नहीं है। अदालतें जरूरी केस तो वक्त पर निपटा नहीं पा रही हैं, वे फिल्में कैसे देखेंगी और फिल्मों के फैसले करना अपने आप में एक तकनीकी काम है। यह काम अदालतों का नहीं है।
ट्रिब्यूनल में कौन-कौन सदस्य?
सरकार ने ये तय किया था कि हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज इस ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष होंगे। ये भी तय हुआ था कि केन्द्र सरकार की ओर से ट्रिब्यूनल में चार और सदस्यों की नियुक्ति होगी। हालांकि, ये चार सदस्य कौन हो सकते हैं, इसका कोई मानक तय नहीं किया गया था। यानी कि सरकार चाहे तो किसी को भी सदस्य बना सकती थी। अभी जो ट्रिब्यूनल निरस्त हुआ, इस में सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस मनमोहन सरीन अध्यक्ष पद पर थे। 2017 में ट्रिब्यूनल में बाकी के चार सदस्यों में एडवोकेट बीना गुप्ता, पत्रकार शेखर अय्यर, भाजपा की नेता शाजिया इल्मी और भाजपा से ही जुड़ी हुई फिल्म अभिनेत्री पूनम ढिल्लों को शामिल किया गया था। बाद में शाजिया इल्मी और पूनम की जगह फिल्म क्रिटिक सैबल चटर्जी और मधु जैन को शामिल किया गया था।
अब प्रोड्यूसर्स का खर्चा बढ़ेगा और देरी भी होगी
फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए लोग बताते है कि सेंसर बोर्ड के फैसले के खिलाफ ट्रिब्यूनल में जाना आसान था। इसमें सिर्फ एक सरल आवेदन देना होता था। निर्माता चाहे तो खुद भी ट्रिब्यूनल के सामने पेश होकर अपनी बात रख सकते थे। अब हाईकोर्ट जाने का मतलब ये है कि बिल्कुल कानूनी तरीके से अपील करनी होगी, वकील भी करना होगा। हमारे यहां न्याय तंत्र पर पहले से ही वर्कलोड ज्यादा है और कोविड की स्थिति में ये वर्कलोड और बढ़ गया है। मतलब कि हाईकोर्ट का फैसला आने में देरी भी लग सकती है। इससे फिल्म के कुछ सीन को आदेशानुसार री-शूट करने में तथा बाद में फिल्म रिलीज करने में भी देरी हो सकती है। ये भी काफी नुकसानदेह हो सकता है ।
फिल्म इंडस्ट्री पर असर डालने वाला इतना बड़ा फैसला लेने से पहले फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से कोई राय-मशविरा नहीं किया गया। आज इंडस्ट्री के कई लोग सरकार की गुड बुक में माने जाते हैं। समय-समय पर वह सरकार के बहुत सारे कैम्पेन में हिस्सा लेते हैं और उसे सपोर्ट भी करते हैं। पर सरकार ने इनसे भी कुछ पूछना, राय लेना या मशविरा करना जरूरी नहीं समझा।
ऑर्डिनेंस लाया गया
सरकार ने The Tribunals Reforms (Rationalisation and Conditions of Service) Ordinance, 2021 जारी किया है। इस ऑर्डिनेंस के जरिए आठ ट्रिब्यूनल निरस्त कर दी गई हैं। इन सारी ट्रिब्यूनल्स की न्यायिक सत्ता तब्दील की गई है। मतलब अपील सुनने का जो न्यायिक अधिकार अब तक इन ट्रिब्यूनल को था, उसे हाईकोर्ट या और सत्ता मंडल को दिया गया है। फिल्म सर्टिफिकेशन के मामले में ये अधिकार हाईकोर्ट को दिया गया है।
लोकसभा में आया था बिल
बड़े-बड़े प्रोड्यूसर्स का कहना है कि सरकार ने एकदम से ये फैसला किया है। पर वास्तव में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसी साल फरवरी में लोकसभा में The Tribunals Reforms (Rationalisation and Conditions of Service) Bill, 2021 पेश किया था। पर बजट सत्र में ये बिल बहाली के लिए चर्चा में लाया नहीं गया था। इसलिए अब ऑर्डिनेंस जारी किया गया है।
दायरा बढ़ाने की बात थी
भारतीय फिल्मों की सेंसरशिप में सुधार लाने के लिए श्याम बेनेगल कमेटी गठित की गई थी। इस कमेटी ने सुझाव दिया था कि आम जनता में भी जो लोग किसी फिल्म को लेकर विरोध जताना चाहते हैं, उन्हें इस ट्रिब्यूनल में आवेदन करने की मंजूरी दी जाए। जिससे न्याय प्रणाली पर कार्य बोझ भी कम होगा और सिर्फ प्रसिद्धि के लिए कोर्ट में जाने वाले लोगों पर भी अंकुश लगेगा।